सिद्धार्थ
क्या मेले के गुब्बारे कभी ख़ामोशी की तलाश में भटकते होंगे? क्या पूनम का चान्द कभी अमावस की आस रखता होगा? शहर की बसों ने कभी ढूँढी होंग किसी गाँव का रस्ता? क्या सागर की मछलियों ने एक दिन किसी वीरान कुएँ का ख़्वाब देखा होगा?
मैंने न तलाश की न ख़्वाब देखे हैं, इन सियाही की लकीरों में मैं कबसे गुमशुदा हूँ|
पीपल वृक्ष —
एक त्रिकोण पत्ते
में समक्ष भू
Translation:
Siddhartha
Do balloons in a fair ever go wandering in search of some quiet? Does the full moon ever yearn for the new moon’s night? Have a city’s commuter buses ever looked for the road to some village? Did the fishes of the ocean ever dream of an obscure well some day?
I’ve neither sought nor dreamt, for long have I been lost in these lines of india ink.
peepul tree —
in a triangular leaf
the world
Published in Chrysanthemum 17
क्या मेले के गुब्बारे कभी ख़ामोशी की तलाश में भटकते होंगे? क्या पूनम का चान्द कभी अमावस की आस रखता होगा? शहर की बसों ने कभी ढूँढी होंग किसी गाँव का रस्ता? क्या सागर की मछलियों ने एक दिन किसी वीरान कुएँ का ख़्वाब देखा होगा?
मैंने न तलाश की न ख़्वाब देखे हैं, इन सियाही की लकीरों में मैं कबसे गुमशुदा हूँ|
पीपल वृक्ष —
एक त्रिकोण पत्ते
में समक्ष भू
Translation:
Siddhartha
Do balloons in a fair ever go wandering in search of some quiet? Does the full moon ever yearn for the new moon’s night? Have a city’s commuter buses ever looked for the road to some village? Did the fishes of the ocean ever dream of an obscure well some day?
I’ve neither sought nor dreamt, for long have I been lost in these lines of india ink.
peepul tree —
in a triangular leaf
the world
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